ख़ामोशी
ख़ामोश नज़रों में सदियों से कोई कहानी ना थी।
ज़िन्दगी थी तन्हा अकेली, शामों की कोई और ज़ुबानी ना थी।
रोज़ थे धुत पैमानों की ही आरज़ू में ज़िंदादिल।
शराब पीता था मुझे, मुझे भी शराब...
ज़िन्दगी थी तन्हा अकेली, शामों की कोई और ज़ुबानी ना थी।
रोज़ थे धुत पैमानों की ही आरज़ू में ज़िंदादिल।
शराब पीता था मुझे, मुझे भी शराब...