...

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दूरियां...
दूरियां कुछ इस कदर हैं हमारे दरमियाँ
कि नजदीकियों मे भी अब फासले बंद हैं
है साथ हमारे वो आज भी, पर उनके होने के वो एहसास नम हैं
बातें तो कई हैं कहने को उनसे मगर, उन बातों को बयाँ करने के लिए जुबान पे अब अल्फाज कम हैं
अपने भी रुस्वा कर दिए जिसे अपना बनाने भर के लिए,
तो कमाल की बात ये है जनाब की उस अपने के लिए ही हो चुके अंजान हम हैं .
इश्क़ की गलियों से रुस्वा हुए , खुद के शहर में खड़े बेगाने हम हैं.
दूरियां कुछ इस कदर हैं हमारे दरमियाँ
कि नजदीकियों मे भी अब फासले बंद हैं.
@Harshita







© Harshita