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M.S. DHONI... the skipper
आज की तारीख उस नंबर को दिखा रही है ,जिस नंबर ने हर क्रिकेट प्रेमी के जेहन में अपनी छाप छोड़ी ।
जी हां दोस्तों आज की तारीख है 07-07...यानी के 07 जुलाई।
विश्व क्रिकेट की परिपाटी बदलने वाले एक महान क्रिकेटर के जन्म की तारीख....आज पूरी क्रिकेट बिरादरी इस शख्स को अपने अपने तरीके से जन्म दिन की बधाई दे रही होगी तो सहसा मेरे ड्राफ्ट बॉक्स में उनके रिटायरमेंट के दिन बड़ी ही भावुकता से लिखी गई उस आलेख ने जिद मचाना शुरू कर दिया की -"हमे कब छापोगे सर?"

तो पेश है आपके लिए वो आर्टिकल जिसे मैंने माही के लिए लिक्खा था ,अगर आप क्रिकेट प्रेमी हैं ,और माही के फैंस हैं तो आप को ये एक बार जरूर पढ़नी चाहिए।
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6 अप्रैल 2005

सुबह के 8 साढ़े आठ बजे थे....मेरे घर पर अखबार देने वाले कैलाश भईय्या ने हर रोज की तरह दैनिक जागरण अखबार दिया ।

अखबार लेने के बाद अपनी आदत के अनुसार मैने सबसे पहले "खेल जागरण" पृष्ठ को खोलना चाहा...की मेरी नज़र पहले पन्ने पर पड़ी ।

शीर्षक कुछ इस तरह से था "झारखंड के धोनी ने किया पाक को बेहाल"

और इसके नीचे मैच का वर्णन कुछ इस तरह से था...!!!

विशाखापत्तनम में रांची के लाल महेंद्र सिंह धोनी का ऐसा तूफान आया कि 40 गेंद में 74 रन बनाने वाले वीरेंद्र सहवाग भी चर्चा में कहीं पीछे रह गए।
धोनी ने इस मैच में 123 गेंदों का सामना करते हुए कुल 148 रन बनाए थे..15 चौक्कों और 4 छक्कों से सजी इस पारी की खासियत यह थी कि यह उस समय एकदिवसीय क्रिकेट (50/60 ओवर गेम) में यह किसी भी विकेटकीपर का दूसरा सबसे बड़ा व्यक्तिगत स्कोर था...इससे ज्यादा रन ऑस्ट्रेलिया के एडम गिलक्रिस्ट के नाम था..2003-04 के वीबी सीरीज में ज़िम्बाब्वे के ख़िलाफ़ 172 रन ।

यह पढ़ कर मन को कितनी खुशी हुई ये मैं शब्दों में बयान नही कर सकता....अब तक मैं और मेरे जैसे करोड़ो भारतिय क्रिकेट प्रेमी एक ऐसे विकेटकीपर की उम्मीद कर रहे थे जो एडम गिलक्रिस्ट की तरह तूफ़ानी बल्लेबाजी कर सके...लंबे लंबे छक्के लगा सके...किसी भी नम्बर पर आकर टॉप गियर पर बल्लेबाजी कर सके ।

क्यों कि हमने अब तक किरण मोरे...विजय दहिया....समीर डिघे.... नयन मोंगिया जैसे विकेटकीपर को देखा था...जो बल्लेबाजी तो कर लेते थे,पर उनकी बल्लेबाजी में वो बात नही थी जो दिल को धड़का जाए ।

यहां पर भारत ही नही बल्कि विश्व क्रिकेट को मिला वो अनमोल हीरा....जिसकी चमक कोहिनूर से भी कहीं ज्यादा थी।

पाकिस्तान की टीम 3 टेस्ट मैच और 6 एकदिवसीय मैचों की सीरीज खेलने के लिए भारत आई हुई थी...ये भारत के 2003-04 के पाकिस्तान दौरे के बाद की जवाबी सीरीज थी।
2003-04 की सीरीज भी 1999 के बाद काफी मशक्कत के बाद वर्तमान प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने शुरू करवाया था और इस दौरे से ठीक पहले ऑस्ट्रेलिया में शानदार प्रदर्शन कर के लौटी भारतिय टीम ने पाकिस्तान में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए टेस्ट एवं एकदिवसीय दोनो ही सीरीज जीत ली ।
मुल्तान टेस्ट में जहां वीरेंद्र सहवाग ने तिहरा शतक बनाया तो वहीं सचिन तेंदुलकर ने नाबाद 194 रन बनाए...यहीं पर सौरव गांगुली की जगह कप्तानी कर रहे राहुल द्रविड़ ने पारी समाप्त घोषित कर दी !
इस टेस्ट को पारी के अंतर से जितने के बाद दूसरे टेस्ट में पाकिस्तान से 9 विकेट से हारने के बाद...रावलपिंडी में हुए तीसरे टेस्ट को राहुल द्रविड़ के 270 रनों की बदौलत भारत ने जीतते हुए सीरीज को 2-1 से जीत लिया था ।

एकदिवसीय सीरीज को भारत ने भले ही जीत लिया... लेकिन रावलपिंडी में ही हुए दूसरे एकदिवसीय मैच में पाकिस्तान के 329 के जवाब में भारत सचिन तेंदुलकर के बेहतरीन 141 रनों के बावजूद 12 रनों से मैच गंवा दिया...इस मैच की तरह अधिकांश मौकों पर भारत एक ऐसे बल्लेबाज की कमी से जूझ रहा था जो मैच को मंजिल तक पहुंचा सके...एक अच्छे फिनिशर के ना होने की वजह से भारत अच्छे प्रदर्शन के बावजूद मैच हार जाता था ।

इसी बीच महेंद्र सिंह धोनी का आना....किसी करिश्मे से कम न था।

अपने करिअर के पांचवे मैच में जहां धोनी ने 148 जैसा बड़ा स्कोर बनाया तो वहीं उसी वर्ष अपने 22वें मैच में श्रीलंका के ख़िलाफ़ जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम में धोनी ने 299 के लक्ष्य का पीछा करते हुए 145 गेंदों में शानदार 183 रन ठोंक दिए....इस पारी की बदौलत धोनी की धमक और बल्ले की गूंज पूरे विश्व ने सुना ।

अपनी अनोखी बल्लेबाजी और देसी अंदाज़ के कारण महेंद्र सिंह धोनी हर किसी के दिल की धड़कन बनते चले गए....और अपने करियर में सिर्फ 42 मैच खेलने के बाद आईसीसी के बल्लेबाजों की रैंकिंग में बड़े बड़े सूरमाओं को पछाड़ते हुए नंबर एक कि कुर्सी को हथिया लिया।

उस दौर में भारतीय क्रिकेट बड़े बदलाव के दौर से गुज़र रही थी.... कोच जॉन राइट की विदाई के बाद कप्तान सौरव गांगुली भी टीम से बाहर हो चुके थे... और अब नए कप्तान थे राहुल द्रविड़।
ये एक रहस्य ही रहेगा की जिस सौरव गांगुली ने कोच के रूप में ग्रेग चैपल को लाया था...उसी ग्रेग ने सौरव गांगुली को टीम से बाहर करने में महत्वपूर्ण भूमिका क्यों निभाई थी ?"

राहुल द्रविड़ और ग्रेग चैपल की जोड़ी 2007 के विश्व कप में वेस्टइंडीज गई...उनके प्रयोगों के दौर भारत के लिए एक बुरा सपना साबित हुआ...और भारत विश्व कप में पहले ही दौर से बाहर हो गया...अपने ग्रुप में सिर्फ एशोशिएट टीम बरमूडा को ही हरा पाए... जबकि बांग्लादेश और श्रीलंका से हार का सामना करना पड़ा।

ये महेंद्र सिंह धोनी के भारतीय क्रिकेट के शिखर पर चढ़ने के शुरुआत का यही दौर था ।

महेंद्र सिंह धौनी के क्रिकेट का सूरज जिस तरह चढ़ता रहा उनके करियर में भी उतने ही चांद लगते गए।
2007 में बीस ओवरों का पहला विश्व कप जीत कर धौनी ने ये साबित कर दिया कि उनके अंदर एक कुशल नेतृत्व कौशल भी है ।

2011 के 50 ओवरों के विश्व कप में मैच विजयी पारी खेल कर भारत को न सिर्फ 28 वर्षो के बाद विश्व कप ट्रॉफी दिलाया...विश्व कप जीतने वाला भारत पहला मेजबान भी बना...उसके बाद एक संयोग ही है कि 2015 और 2019 क विश्व कप को भी मेजबान टीम ने ही जीता।

अपने करियर में धौनी ने अनेकों मौके दिए जिससे क्रिकेट प्रेमियों के चेहरे पर मुस्कन थिरक सकी.... इसीलिए तो ये रेलवे की नौकरी छोड़ कर आए थे ।

आज उनके रिटायरमेंट अनाउंस होने के बाद मैं ये सोच रहा हूँ... "महेंद्र सिंह धौनी होने के मायने क्या हैं?"

रांची जैसे अपेक्षाकृत कम मशहूर शहर से आए एक साधारण से लड़के ने जिस तरह से समूचे विश्व क्रिकेट में अपनी चमक बिखेरी....ये किसी भी तरह से एक परिकथा से कम नही है।

धौनी भारतीय क्रिकेट के प्रति पूरी तरह से समर्पित औऱ निष्ठावान रहे....वे कभी भी अपने रिकॉर्ड के लिए नही खेले,टीम के हित को सर्वोपरि माना ।

अगर टीम की जरूरत के हिसाब से उन्होंने अपनी बल्लेबाज़ी स्टाइल को न बदला होता तो पूरे विश्व को निसंदेह "दूसरा सचिन तेंदुलकर" मिलता ।

रन और शतक के कई रिकॉर्ड उनके नाम होते...खैर धौनी कभी भी रिकॉर्ड के लिए नही खेले ।

ये निर्मोही हैं....अपने धुन में मगन ।

अपने फैसलों से सामने वाले को चौंका देने का हुनर भी इन्ही के पास है।

मैं जब क्रिकेट मैच देखा करता था...तब से लेकर अब तक काफी कुछ बदल चुका है....जो एक चीज नही बदला था वो था....नीली जर्सी पहने हाथों में विकेटकीपिंग ग्लव्स लागए विकेटों के पीछे खड़ा वो शख्स... जिसके हाथों में बिजली सी फुर्ती थी।।

एकदिवसीय क्रिकेट सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाजों में धौनी 10773 रनों के साथ 11वें नंबर पर रहे जबकि 229 छक्कों के साथ छक्कों की सूची में पांचवे नंबर पर।

एक कप्तान के तौर पर क्रिकेट के तीनों फॉरमेट में कुल 332 मैच खेले... विश्व रिकार्ड है ये

विकेट के पीछे 829 शिकार के साथ धोनी तीसरे नंबर पर हैं....दक्षिण अफ्रीका के मार्क बाउचर और ऑस्ट्रेलिया के एडम गिलक्रिस्ट ही उनसे आगे हैं जबकि 195 स्टंप्स के साथ वे अन्य विकेट किपरों से मिलो आगे हैं।

इन आंकड़ों से कहीं ज्यादा बेहतर थे धौनी.... हैं धौनी ।

माही जब भी बल्ला थामेगा.... भारत के हर शहर हर गांव हर गली में एक बच्चा खुशी खुशी ये चिल्ल्लायेगा ही "माही मार रहा है!"

कहते हैं कोई भी खिलाड़ी खेल से बड़ा नही होता....लेकिन मैंने देखा है ,मैंने देखा है जब खिलाड़ी का कद खेल से कहीं ज्यादा बड़ा हो गया ।

सचिन रमेश तेंदुलकर और महेंद्र सिंह धौनी.... ये जब तक खेले अपनी शर्तों पर खेले ।

माही के रिटायरमेंट के बाद....हम सारे फैंस उन्हें हमेशा मिस करेंगे ।

धौनी को उनके होमटाउन में एक फेयरवेल मैच खेलने का मौका मिलना ही चाहिए ।
© Akash_Ydv