...

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नेत्र
काला-सा गहरा तरंग है,
हर दृष्टि उसे स्मरण है,
याद रखने का अनोखा अंग है,
चाहे कोई इमारत हो या कोई सुरंग है,
इसका न कोई घमंड है,
मेरे नेत्र हमेशा मेरे संग है।

ये नेत्र भी होते बड़े अनजान है,
खुद से ही बाते किए जाते हैं,
कौन जानता है इसकी भी पहचान है,
हमारे पास ऐसा न कोई ज्ञान है,
जिससे पता चले कि इनमें भी जान है,
फिर भी मेरे नेत्र ईश्वर स्वरूप दिए गए दान हैं।