...

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आवाज़
जब जब जुर्म हुआ
कोई आवाज़ सुनने नहीं आया
इंसाफ की बात की
तो साथ खड़े होने कोई नहीं आया ।।

और जब खाक हुई
तो रास्तों में कैंडल मार्च निकल आया ।

जब आवाज़ उठाने और हत्यार से प्रहार करने
जब मै तैयार हुई
तब तुम में हिम्मत आई
सड़े आम हमारा तमाशा बनना
कोई मज़ाक नहीं है।।

यह तो सदियों से होता आ रहा
तब भी ख़ामोश
अब भी ख़ामोश ही रह गए।

हवस है तुम में इसलिए
तुम्हारे लिए हम यौन के पुतले है
शरीर के भूखे हो तुम
इसलिए आंखो से हवस टपकती है
पर याद रहे नारी है हम
बदला ले भी सकते है और
ज़रूरत हुई तो
श्री दुर्गा शक्ति में
तब्दील भी हो सकते है।।

तेरा वध भी हो सकता है
उस महिशासुर के भांति।

आग ना टटोलो इज्जत करना सीखो
सिर्फ नारी की ही नहीं
पुरुष की भी
क्योंकि आज कल बलात्कार
दोनों का होता है।।

यानी हवस नर और नारी दोनों में है
सम्मान करना सीखो
यौन दो तरफा होता है,
कोई एक राज़ी ना हो तो
बलात्कार ही कहलाता है
सम्मान करना सीखो
हैवान नहीं
इंसान बनो।।

- अनु अनुष्का