रंगभूमी (द्वितीय पर्व)
अर्जुन दिखाएं धनुरकौशल
वा वहीं लूटता,गर्व से छाती पुलाता।
तभी एक सूरमा, गर्दिश से निकालता
भर रंगभूमि में दहाड़ता।
हे अर्जुन, खुद की जयजयकर सुन
क्यों फूला जाता है,
जो बातो से फूला ना समाए वो वीर नहीं कहलाता है ।
खींच प्रत्यंचा सुनाई सबको टंकार
लो...
वा वहीं लूटता,गर्व से छाती पुलाता।
तभी एक सूरमा, गर्दिश से निकालता
भर रंगभूमि में दहाड़ता।
हे अर्जुन, खुद की जयजयकर सुन
क्यों फूला जाता है,
जो बातो से फूला ना समाए वो वीर नहीं कहलाता है ।
खींच प्रत्यंचा सुनाई सबको टंकार
लो...