...

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रंगभूमी (द्वितीय पर्व)
अर्जुन दिखाएं धनुरकौशल
वा वहीं लूटता,गर्व से छाती पुलाता।
तभी एक सूरमा, गर्दिश से निकालता
भर रंगभूमि में दहाड़ता।

हे अर्जुन, खुद की जयजयकर सुन
क्यों फूला जाता है,
जो बातो से फूला ना समाए वो वीर नहीं कहलाता है ।
खींच प्रत्यंचा सुनाई सबको टंकार
लो कर्ण दिखाने लगा अपने धनुर्विद्या का कमाल ।

निकाल तूणीर से बाण, चढ़ाए धनुष पर
येसा संधान करता, देख उसे विस्मित होती जनता ।
हवा भी कर्ण के बाणों संग रुख मोड़ती
रंगभूमि में बस कर्ण के धन्वा की टंकार गूंजती ।

रे अर्जुन यूं तु सर्वश्रेष्ठ साबित ना होगा,
तुझे मुझसे तो द्वंद्व करना होगा ।
जन ने देखा ना ऐसा करतब निराला
दसो दिशाओं में हुआ कर्ण का बोलबाला।

Stay tuned........
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© SRJ