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आँखों की डिबिया में निंदिया
एक वो दिन था जब पहली बार किसी लड़की से रात में फोन पर बात की थी। मुझे खुद पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह मैं ही हूँ।
लेकिन सच तो यही था कि उस रात मेरी आँखों में नींद नहीं थी।
इश्क़ की उस गुलाबी सुबह होने तक दोनों फोन पर एक दूसरे से बात कर रहे थे।

फिर अगले दिन जब उससे मिला...
मैं भी उस इश्क़ की फिज़ा में बह सा रहा था। वो गुलाबी रंग के सूट में मिलने आई।(उस मॉडर्न लड़की को पता था शायद की मुझे वो सूट में ज्यादा खूबसूरत लगती है)
दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराये। वो मुस्कराहट इश्क़ की कोपल थी जो उस दोपहर फूटी थी।
करीब 15-20 मिनट मैं बिना कुछ बोले बस उसको को देखता रहा और फिर हम पागलों की तरह मुस्कुराते रहे। इश्क़ का आगाज़ हो चुका था। इतनी ऊर्जा थी उस सुबह में कि ना नींद थी ना थकान बस उस एक ही इच्छा थी दिल में कि ये पल बस यहीं रुक जाये।
हाय! दुनिया की सारी खूबसूरती समा गयी थी उसमें। पलकों को सख्त हिदायत थी कि झपकना नहीं है।

जैसे आँखों की डिबिया में निंदिया और निंदिया में मीठा सा सपना और सपने में मिल जाये फरिश्ता सा कोई। 💞
© Ap