...

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ग़ज़ल
इश्क़ की राहों का राहगीर हूँ
यूँ ही कोई आवारा नहीं हूँ मैं

बहती लहर हूँ उफनती नदी की
कोई ठहरा हुआ किनारा नहीं हूँ मैं

हर ग़म सीने से लगा लेता हूँ चुपके से
अंधेरा हूँ काली रात का उजियारा नहीं हूँ मैं

हूँ गर्म मिजाज़ बदतमीज भी बहुत हूँ
सूरज हूँ किसी की आँखों का तारा नहीं हूँ मैं

टूटता हूँ बेशक हर एक शिकस्त के बाद बेशक
रूक जाता मगर अभी हारा नहीं हूं मैं
@ कैलाश

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