...

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बेताब-ए-दिल
तेरी गली में चाँद छिपाया,
दरश को तेरे दौड़ा आया।
फिर चाँद मिला ना आई नज़र तू,
हाल पे मेरे मैं चिल्लाया ।।
तेरी गली में चाँद छिपाया,
दरश को तेरे दौड़ा आया।।१।।

रुख़्शत तुझसे साँस नही है,
दिल मेरा मेरे पास नही है।
जाने क्या अब मेरा होगा,
इस सोच ने मुझको बहुत रुलाया।।
तेरी गली में चाँद छिपाया,
दरश को तेरे दौड़ा आया।।२।।

जीवन का अब नाम है तुझसे,
मेरा तो हर काम है तुझसे।
पाग़ल प्रेमी प्रियतम बनकर,
ये ख़ुद ही क्या मैं कर आया।।
तेरी गली में चाँद छिपाया,
दरश को तेरे दौड़ा आया।।३।।

तन्हा तन्हा ये जीवन है,
रुख़्शत तू आजीवन है।
तेरी कमी से इन अंखियन को,
मैंनें ही तो बहुत रुलाया।।
तेरी गली में चाँद छिपाया,
दरश को तेरे दौड़ा आया।।४।।
© A.k.mirzapuri