...

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तिरंगा
ऐसे हूँ तो स्वतंत्र मैं ,
पर मजहबो के खेल में बँट सा जाता हूँ।
इरादे फौलाद से है मेरे ,
मगर फिर भी दंगों में जला दिया जाता हूँ।
शान से सब फहराते तो है मुझे ,
पर सीमाओं की बंदिशें भी लगा दिए जाते है।
हाँ मैं शौर्य , अमन और आज़ादी में रंगा ,
अपने भारत वर्ष का अभिमान हूँ ,
मैं ऐसा तिरंगा हूँ।

हुआ निर्माण मेरा देश में एकता और शांति पताका फहराने को ,
पर बाँट दिया निजस्वार्थ ने ,
मुझे मजहब और जाँत - पात में।
होता पूरा तीन रंगों से में ,
मगर फहराते मुझे कोई भगवा में ,
तो कोई हरे में रंग जाते है।

मैं हूँ वहीं तिरंगा ,
जिसे तुमने सजाया शान से शहीदों पर ,
जो भारत के स्वाभिमान है।
मैं लिपट उन देश प्रेमियों से ,
मैं वारि - वारि जाता हूँ ,
क्योंकि तिरंगे की आन की खातिर जो ,
खुद मिट्टी में है मिल जाते वो।
हाँ मैं किसी के दिल में प्यार के फूल खिलाता हूँ ,
तो किसी के जेहन में नफरत की ज्वाला जलाता हूँ।

हाँ मैं आन , बान और शान से सजा ,
अपने भारत देश का अभिमान हूँ ,
मैं ऐसा तिरंगा हूँ।

© _marwadi_chokri_❤