...

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मैं पूछ लू
मैं पूछ लू तुमसे कभी,
ठहर जाओ थोड़ा और यही...
जहाँ,
कुछ तेरे तो, कुछ मेरे खयाल होंगे,
कुछ जाने पहचानी हसरत
कुछ अनजाने सवाल होंगे,
कहीं सुनसान पड़े किसी शहर के
रोशन चौराहे होंगे,
कही टहनियों पर टंगे फूल जवान होंगे...
ज़ुबा न सही
नज़रो से बातें होंगी,
साथ तुम्हारे
वो सर्द रातों होंगी,
जहां आग किनारे
बाहें तुम्हारी होंगी...
और उन बाहों में
पिघली शामें होगी...

मैं पूछ लू तुमसे कभी,
ठहर जाओ थोड़ा और यही...

--मनीषा राजलवाल



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