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"वोह देश है भारत"
जिस देश की मिट्टी के ख़ातिर मर मिट जाएँ ज़वान वोह देश है भारत,

जिस देश की क्रान्ति के ख़ातिर भरी ज़वानी में फांसी पर चढ़ आएँ वोह देश है भारत,

जिस देश की आन बान और शान के ख़ातिर लहू का कतरा कतरा बहा दे वोह देश है भारत,

जिस देश की पवित्र गंगाजी जो देश के लिए केवल नदी नहीं माँ है उस नदी की आरती उतारता वोह देश भारत है,

(किसीने मुझसे(कवि)से पुछा कि इस हिमालय की गहराई कितनी होगी,मैंने स्वयम् हिमालय से पुछा की है कैलाशा हिलामय क्रीपा कर के अपनी गहराई हमें बताएँ,तो हिमालय ने उतर दियाँ,

हे कविराज में सब से कद में ऊंचा शिखर हुँ अगर आपको हमारी ऊंचाई का उतर चाहिए तो में दे सकता हुँ किन्तु गहराई में नहीं माप सकता क्योंकि मैं शिखर हुँ,

कवि ने आ कर उस मनुष्य को बताया जिसने प्रश्न किया था और फ़िर एक बार उस मनुष्य ने कवि से पुछा कि क्याँ आप सागर की ऊँचाई माप सकते हैं,,,???

कवि सागर के पास गया और बोले हे नारायण के ग्रुहस्थ सागरदेव क्रिपा कर आपकी उँचाई हमें बताएँ,

सागरदेव ने कहा हे कविराज में सागर हुँ,मेरी गहराई होतीं हैं,अगर गहराई का माप चाहिए तो दे सकता हूँ किन्तु ऊँचाई में नहीं बता सकता,

फ़िर कवि उस मनुष्य के पास गया और सागरदेव ने जो बताया वह सब उस मनुष्य को बताया और मनुष्य बोला क्षमा करे कविराज यदि आपके पास दोनों प्रश्नों के उत्तर नहीं दे शके,हमें तो यह ज्ञात होता हे की आप कवि केवल नाम के हे परंतु गुणवंता तो हे हीं नहीं,

कवि को बहोत चोंट पहोची उस मनुष्य की बाते सुनकर और उसी क्षण माँ सरस्वती का स्मरण करता हुआ और आंखोँ मे से अश्रु बहाता हुआ कहेने लगा हे माँ यदि आज मे अपने आप को कवि प्रमाण नहीं कर पाया तो में अपने प्राण की आहुति दे दूंगाँ,

इतने माँ शारदा स्वयम् प्रगट हुई और बोली हे पुत्र तुम तो चारण हो माँ पार्वतीजी के प्रिय पुत्र में से एक हो और पिता महादेव के शीर को नेत्र ज्योति से देखो उतर की स्वयम् प्राप्ति होंगी,

कवि ने नेत्र बंद करके माँ पार्वतीजी और महादेव का चित्र देखा और महादेव की जट्टा से बहेती हुई गंगाजी को देखा और कवि बिना देरी कीये उस मनुष्य को लेकर गंगाजी के पास गया और माँ गंगे से करजोड करके दोनों प्रश्न पूछें और माँ गंगा बोली,

हे कविराज मै हिमालय के शिखर से बहेती हुई सब को पवित्र करती हुई अंतिम मे सागरदेव से मिलती हुँ और शिखर की गहराई और सागर की ऊँचाई दोनों के उतर मैंने इस बात में दे दिये है,

कवि मनुष्य के सामने देख बोला हे भ्रांता क्रीपाया अपना परिचय दे,
मनुष्य बोलते हुए हे कवि में तुम्हारे भीतर की आवाज़ हुँ,

हे सरस्वती पुत्र चारण तुम्हें अश्रु बहाने में मजबुर किया उसकी में क्षमाप्रार्थना करता हुँ,
हे भीतरी काया यदि तुम ना होते तो आज मुझे गहराई की ऊँचाई और ऊँचाई गहराई समझ ना आती और माँ गंगा के दर्शन का लाभ प्राप्त ना होता,इसलिए मैं तुम्हारा धन्यवाद करता हुँ...
जिस देश की नदियाँ हिमालय के शिखर से बहेती हुई सगार में मिले वोह देश है भारत,
जिस देश की संस्कृति मान मर्यादा और परंपराओं से सजी धजी है वोह देश है भारत,
© Deep's Mahedu