...

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श्रृंगार करूं.....
तुम तो सादगी की उपमा हो
मैं शब्दों से कैसे अलंकृत करूं ?।

तुम तो सौंदर्य की रसधार हो
मैं विस्तृत से कैसे श्रृंगार करूं ?।

तुम तो पायल की झंकृत हो
मैं कलम से कैसे वृतांत करूं ?।

तुम तो केशों की वृक्षलता हो
मैं कगीं से कैसे शृंखला करूं ?।

तुम तो चेहरे की मुस्कान हो
मैं काव्य से कैसे गंभीर करूं ?।

तुम तो नैनों का काजल हो
मैं स्याही से कैसे पूर्ण करूं ?।

तुम तो अधरों की मिठास हो
मैं चुंबन से कैसे स्पर्श करूं ?।

तुम तो आलिंगन की ठंडक हो
मैं सुकून से कैसे पहल करूं ?।

तुम तो वाणी का मृदंग हो
मैं कंठ से कैसे खास करूं ?।

तुम तो रक्त का संचार हो
मैं स्पंदन से कैसे जांच करूं ?।
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