...

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शाम रंग
क्षितिज के किनारे छुपी कही
केसर लाली में निखारती कही
खाईशो के आगे ढली हर रोज

सजी शाम रंगो की
बहती हवाओ सी
ख्वाब हकीकत की
कश्मकश कही
पहर दो पहर यादोंकी
शाम बिखरती कही

रात का इतंजार अब वक्त सलत
थमता ये मंज़र,
गुज़रता ये लम्हा
महफ़िल ये बनी नीलम सी कही !

आगम