आशियाना
तेरे इस आशियाने की खातिर,,,,
मैंने अपनी पहचान नश्वर करी है।
हर रिश्ते को रखा समेट कर,,,
ना शिकायत कभी कोई करी है।
कभी पसीना पोंछती आपका,,,,
कभी बच्चों का ख्याल रखती हूं।
सब काम निपटाकर घर के मैं,,,
सास ससुर की सेवा करती हूं।
फिर भी आप...
मैंने अपनी पहचान नश्वर करी है।
हर रिश्ते को रखा समेट कर,,,
ना शिकायत कभी कोई करी है।
कभी पसीना पोंछती आपका,,,,
कभी बच्चों का ख्याल रखती हूं।
सब काम निपटाकर घर के मैं,,,
सास ससुर की सेवा करती हूं।
फिर भी आप...