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दास्तान ए जिन्दगी
जोड़ो गाड़ी,बंगला,घर,
जोड़ो जमीन,जायदाद,जेवर,
तुम ही तो हो जानते
कि तुम जी गए अगर,
होकर रहेंगी ये दौलतें बेअसर,
नजारे होंगे,नही रहेगी नजर,
लड़खड़ाएंगे पैर,
घूमोगे कैसे सारा शहर,
व्यंजन होंगे शाही,
लगेंगे जहर,
जमीं ओ जायदाद की रख ना सकोगे खबर,
लटकती झुर्रियों पर कैसे सजेंगे जेवर,
सुकूं को जोड़ा जो घर,
उसी मे बे सुकून दर ब दर,
सांसों पर कोहरा मौत का,
जैसे अलविदा होने का डर,
सिमट जाना है जब,
छोटी हांडी में
फिर काहे को जमीं ओ दर।
© अल्फाज
जोड़ो जमीन,जायदाद,जेवर,
तुम ही तो हो जानते
कि तुम जी गए अगर,
होकर रहेंगी ये दौलतें बेअसर,
नजारे होंगे,नही रहेगी नजर,
लड़खड़ाएंगे पैर,
घूमोगे कैसे सारा शहर,
व्यंजन होंगे शाही,
लगेंगे जहर,
जमीं ओ जायदाद की रख ना सकोगे खबर,
लटकती झुर्रियों पर कैसे सजेंगे जेवर,
सुकूं को जोड़ा जो घर,
उसी मे बे सुकून दर ब दर,
सांसों पर कोहरा मौत का,
जैसे अलविदा होने का डर,
सिमट जाना है जब,
छोटी हांडी में
फिर काहे को जमीं ओ दर।
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