...

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मुक्तिबोध
पतझड़ में पीपल के पीले पत्तों पर
धूप की किरणों की अठखेलियां...
जीवन जलप्रपात की उमंग जैसे..
कवि हृदय का सतत वसंत.....

आनंद का अतिरेक है यह क्षण
दिव्य अनुभूतियों का विकिरण,
प्रकृति स्वयं संपूर्णता
मुक्तिबोध का द्वार चरण.....

अभी यहां होना ही 'है'
इस रूप में स्पंदन......
व्यर्थ बौद्धिक प्रपंच बाकी
हे प्रकृति, तेरा ही वंदन!




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