...

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uski khusi
इश्क़ की सभा एक दिन कुछ यूँ चल रही थी,
कि इश्क़ में हारे आशिक़ अपने महबूब को कुसुरवार बता रहे थे,
है दर्द कितना उनके दिल में, सबको समझा रहे थे;
फिर कुछ यूँ हुआ, दूर कहीं कोने में बैठे एक शख्स बातें उनकी सुन, धीमे से मुस्कुरा रहे थे,
देख उन्हें , फिर किसी ने कह ही डाला,
बड़े खुशनसीब हो जनाब, लगता है, इश्क़ अभी नया हुआ है, तभी ये चेहरा इतना खिला हुआ है;
सुन कर बातें उनकी, धीमे से वो कहने लगे,
हाँ! अभी अपनी मोहब्बत से मिल कर आ रहा हूँ,
थी वो किसी गैर के संग, बेशक़;
पर चेहरे पर उसकी वो खिलती हंसी देखी है मैंने,
खुश बेहद है वो उसके संग,
हाँ! इसी खुशी में खिल कर आ रहा हूँ।
© midnyt_ink