...

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यहां कोई नहीं किसी का
अपना होकर भी
सौतेलों सा व्यवहार करना
मुझ पे इल्ज़ाम लगाना
चिखना चिल्लाना
मुझे बुरा भला कहना
सदियों तक ना भुल पाऊंगा
आपका दिया वो नज़राना
तन के घाव भर जाते हैं बेशक"
मगर मन के घाव नहीं भरते हैं मरते दम तक
बीत गया अपना वो जमाना
अब तो लगता है वो किस्सा पुराना
धन हो गया रिश्तों पे हावी
जाने कहा रह गया वो एहसास बाक़ी
अब नहीं आती कभी याद उनकी
सारे मोहपाश अब पड़ गये फ़ीके
जिंदगी से सबक हम ने भी है सीखें
जरुर से ज्यादा कभी किसी पे ना
विश्वास किजिए।।
अपने ही देते हैं धोखा
कभी छोटा तो कभी बड़ा करके घोटाला
चोट हृदय पे खाई तब बात समझ ये आई
यहां कोई नहीं किसी का......!!
किरण