ग़ज़ल
आज की पेशकश ~
पालिये ऐसे ख़्वाब क्यों आख़िर।
मांगिये माहताब क्यों आख़िर।
ज़िन्दगी मौज में गुज़ारी जाए,
बेवज़ह पेच ओ ताब क्यों आख़िर।
इक मुहब्बत का नशा कम तो नहीं,
इतनी महंगी...
पालिये ऐसे ख़्वाब क्यों आख़िर।
मांगिये माहताब क्यों आख़िर।
ज़िन्दगी मौज में गुज़ारी जाए,
बेवज़ह पेच ओ ताब क्यों आख़िर।
इक मुहब्बत का नशा कम तो नहीं,
इतनी महंगी...