चार दिन की ज़िंदगी
तू किनारे पर ही बैठ ये समंदर बहुत गहरा है,
चार दिन की चांदनी और आगे अंधेरा है,
किस चीज का अभिमान तुझे? ये लालसा किस बात की?
ज़िंदगी के मुखौटे के पीछे आखिर मौत का ही चेहरा है।
माटी से बने, अंत में माटी में ही...
चार दिन की चांदनी और आगे अंधेरा है,
किस चीज का अभिमान तुझे? ये लालसा किस बात की?
ज़िंदगी के मुखौटे के पीछे आखिर मौत का ही चेहरा है।
माटी से बने, अंत में माटी में ही...