...

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फिर मेरा सब्र...
फिर मेरा सब्र हाशिए पर रख दिया जाए,
ए जिंदगी हूं बेसबर, तू न मुझे आजमाए।

हूं बाजार खुद में, खुद में बेहिसाब बड़ा,
फिर भी ऐसा नहीं, बोली कोई लगा जाए।

प्रेम का शिखर पड़ा, नफरतों की खाईं में,
मुद्दत से हूं खड़ा, कैसे कोई डुबा पाए।

कहने को कुछ भी, कहते रहेगें लोग यहां,
हूं न कोई लफ्ज़, जुंबा जहां फिसल जाए।

हूं चिराग ऐसा, जिसमें बाती है न तेल है,
फिर जल रहा हूं, देखो न कोई बुझा जाए।

फिर मेरा सब्र हाशिए पर रख दिया जाए,
ए जिंदगी हूं बेसबर, तू न मुझे आजमाए।