ग़ज़ल
2122-2122-2122-212
ये हवा गर्मी में यारो सर्द चलनी चाहिए
अब तो सीरत मौसमों की भी बदलनी चाहिए
तू मिरा हमदर्द सच्चा है यक़ीन आएगा तब
मैं कराहूँ चीख तेरी भी निकलनी चाहिए
फिर से हाकिम ने दिया है हुक़्म इस बरसात में
हो अगर चूल्हा भी ठंडा आग जलनी चाहिए
तुम मियाँ चुपचाप कोने में कहीं बैठा करो
घर में अब तो सिर्फ़ बीवी की ही चलनी चाहिए
बस इसी कोशिश में गुज़री है हमारी ज़िंदगी
सामने है ग़र शब-ए-ग़म तो ये...
ये हवा गर्मी में यारो सर्द चलनी चाहिए
अब तो सीरत मौसमों की भी बदलनी चाहिए
तू मिरा हमदर्द सच्चा है यक़ीन आएगा तब
मैं कराहूँ चीख तेरी भी निकलनी चाहिए
फिर से हाकिम ने दिया है हुक़्म इस बरसात में
हो अगर चूल्हा भी ठंडा आग जलनी चाहिए
तुम मियाँ चुपचाप कोने में कहीं बैठा करो
घर में अब तो सिर्फ़ बीवी की ही चलनी चाहिए
बस इसी कोशिश में गुज़री है हमारी ज़िंदगी
सामने है ग़र शब-ए-ग़म तो ये...