...

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वो तुम ही तो थे पापा...
मसरूफ़ रहा अल्हड़पन के गलियारों में,
दांव लगाकर वो खुशियां,हमको चमका कर चले गए;
वो उम्मीदों का लिए बोझ,खुशियों की आस लिए,
खोया रहा मैं खुद में ही,वो हमें बनाकर चले गये।

जब जब गिरा धरा पर हो अधीर,
तुमने ही मुझे संभाला था;
जब था संकटमय जीवन,जब दूर तलक अंधियारा था;
वो तुम ही थे पापा जिसने मुझे उबारा था।

जब था अबोध मैं जीवन मे,
तुमने ही सब ज्ञान कराया था;
जब था वजूदहीन जीवन,जब अल्हड़पन में भरमाया था..
वो तुम ही थे पापा जिसने संसार मुझे समझाया था।

किसी रोज़ आ जाओगे ख़्वाबों से निकलकर,
हम आस लिए खुद को ढांढस बंधाते चले गए;
ढूंढ रहा हूँ तुमको शब्दों की स्याही में...
खोया था मैं सपनो में, वो खुद को सपना बनाकर चले गये।
© pagal_pathik