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कविता का इतिहास
#WritcoPoetryDay
हृदय से पीड़ा का नाता पड़ा पुराना और गहरा है
ये पीड़ा ही कविता की जननी है
संसार का पहला छ्न्द इस पीड़ा से ही जन्मा था
नारदजी एक बार स्वर्ग से धरती पर पधारे
महर्षि बाल्मीकि से यह वचन उच्चारे
भगवान विष्णु ने लिया है अयोध्या में रामावतार
महाकाव्य करो रचना उनके जीवन पर
महर्षि ने सोचा मुझे तो नहीं है काव्य की कोई धारणा
फिर कैसे करुं मैं काव्य की रचना
ऐसे ही कुछ समय व्यतीत हुआ
एक दिन गंगा स्नान करने का महर्षि का हृदय हुआ
अचानक उन्होंने देखा बहेलिए ने तीर मारा
कामक्रीड़ा में निमग्न था जो क्रोंच पक्षी का जोड़ा
अपने साथी को तीर लगा देख मादा पक्षी ने भी प्राणों का त्याग किया
कोधवशात महर्षि ने श्राप दिया
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगम: शाश्वती समा:
यत्कक्रोंचमिथुनादेकम अवधी काममोहितम‌्
यही साहित्य जगत का प्रथम छंद है जो महर्षि की हृदय गत पीड़ा से उत्पन्न हुआ था
यही रामायण की रचना की रचना का आधार बना
यदि हृदय में पीड़ा ही न हो तो कविता का सृजन हो ही नहीं सकता वियोग ही कवि को जन्म देता है
कालिदास के मेघदूत से लेकर तुलसीदास की रामचरितमानस तक सिर्फ और सिर्फ पीड़ा का ही संसार है
वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान
निकल कर आंखों से चुपचाप
बही होगी कविता अनजान