...

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अपराजिता का फूल !!
इसबार बिछड़ते हुए मैंने उससे कहा , शायद हम फिर मिलेंगे कहीं
ये सुनकर वो ठिठक गई और मुड़ कर के बोली
हम मिलेंगे लेकिन कहां ?
ये सुनकर तो मानों मैं एकदम खामोश हो गया ,काफी देर तो कुछ बोल ही नहीं पाया
फिर वो कुछ देर मुझे देखने के बाद मुड़ी और चली गई
पर वो सुन नहीं पायी जो मुझे उससे कहना था की :-

की जो बिछड़े तो हम फिर मिलेंगे ,हम मिलेंगे वहीं
जहां आसमान धरती से मिलकर एक हो रहा होगा
जहां सूरज चांद की...