...

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तुम रुकते क्या?

तुम्हे रोकने के कितने जतन किए

तुम्हे यकीन नहीं होगा
की मैने कई बार
बादलों से
बरसने की दुआ मांगी

मुझे लगता था
की बरसात रोक पाएगी तुम्हे

मैं कितनी पागल थी ना

शायद स्त्रियां ऐसे ही
हो जाती हैं पागल
प्यार में

जैसे मैं थी

जिसे मेरे
आंखों की बरसात
रोक पाने में असफल रही
उसे क्या रोकते आसमान के
चन्द बूंदे

बादलों ने मेरी एक ना सुनी

और तुम चले गए
जैसे चला जाता है
बसंत
हर साल
एक इंतजार छोड़ कर

बताओ तुम रुकते क्या?
अगर मैं लिपट जाती
तुम्हारे गले

अगर मैं छिपा देती
तुम्हारे सारे बहानों
वाली डायरी
और तुम भूल जाते
मुझे छोड़ जाने की वजह

तो बताओ
तुम रुकते क्या?


©प्रिया सिंह
01.08.23


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