...

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फाख्ताओं का उड़ाना हो गया मुश्कील
इन अंधेरों में डुबी, आंखों को
ख्वाबों की रंगीन रोशनियां ही नजर आती है
कहे कोई कितना भी गहरे अल्फ़ाज़ों में
छुपि जागीर वो अपनी,नज़र नहीं आती है

व्याकुल मन बहूत तरसता बेतरह
इन अंधेरों को कैसे मिटाएं
मिले महबूब...