...

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दोस्ती की दास्ताँ...
ये पलकें भी बेसबब भीग गयी और आँखों ने बेमौसम वाली बरसात की,
जब मेरे इक दोस्त ने मिलकर, मुझसे फिर कभी ना बिछड़ने की बात की।

उसने पूछा क्या कभी मेरी शरारतें, मेरी बातें, मेरा ख्याल तक नहीं आया,
मैंने कहा जिंदगी की उलझनों के चलते मन में कोई सवाल ही नहीं आया।

वो देर तक तकती रही मेरी आँखों में शायद ढूँढ रही थी कुछ गुज़री यादें,
उसकी आँखों की गहराईयों में भी सिमटी हुई थी कुछ जायज़ फ़रियादें।

फिर मैंने कहा उससे, मुझे लगा शायद मैं अब तुमको याद भी नहीं होऊँगी,
वो बोली, ऐसा तो अब तक मेरे हिस्से में कुछ ना आया जो मैं तुमको खोऊॅंगी।

मैंने पूछा, क्या तुम्हें मेरे बाद कोई दोस्त ही ना मिला अपना बनाने के लिए?
उसने कहा,किसके पास वक़्त हैं अब किसी को समझने- समझाने के लिए।

मैं खामोश रही और डूब गयी कुछ पुराने ख्यालों की सुकून भरी ठंडी छाँव में,
महसूस होती थी जब जिंदगी की सच्ची खुशियाँ हमारे चेहरे के हाव-भाव में।

खुशी हो चाहे गम हो, हर हालात में इक-दूसरे का साथ निभा लिया करते हैं,
सच्चे दोस्त वहीं है जो खुद से पहले अपने दोस्तों के लिये दुआ किया करते हैं।
© आँचल त्रिपाठी