...

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शाम हुई
शाम हुई
शफ़क़ को निहारती यह नयन।
उड़ना चाहती हैं।
तो दूसरी ओर रस्सी से जकड़े,
अपने पंजे को निहारती।
क्या कभी मुमकिन होगा इसको तोड़ना।
जो है यह ना जाने कितनो की सोच की।

वास्तविकता से अनजान,
सुन के ओरो की बोली,
शायद वह चल पड़ी थी...