...

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तू मेरा
सोच रही थी तेरे बारे में आज कुछ लिखूं नया
फिर सोचा तेरे बारे में क्या ही कर सकूं मैं बयान

तू तो एक एहसास है तू लफ्जों में कहां
तू तो हम सब में है जरा देख तो यह

इस जहां में तेरा मंदिर है तेरा तो है पूरा जहां
सिर्फ मस्जिद में ही क्यों हम तो जहां ढूंढे तू हे वहां

तेरी मौजूदगी को तो सिर्फ महसूस किया जाता है
मन की आंखों से देखो तो तू दिख भी जाता है

हर गम में हर खुशी में हर मुसीबत में तू याद आता है
कभी मिले नहीं हम फिर भी तुझे हर गम बांटा जाता है

जिंदगी में कोई खुशी आए तो पहले तुझे याद किया जाता है
दुनिया में अपना कोई नहीं तुझसे ही अपनापन जताया जाता है

कहते हैं तू हर जगह नहीं इसलिए तूने माता-पिता को बनाया है
मगर यह तो एक झूठ है तू तो खुद माता-पिता बनकर ही आया है

© R.G. Bohra