...

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मरघट
बिना बोले जीना है
ये जीने का राज़
गूंगे को चाशनी मिले
मन में बसे मिठास
भीतर भीतर पनप रहा
प्रेम का निज स्वरुप
चैतन्य की बोध गम्यता
सतलज गंगा का जल
निर्मल निर्झरा से धुले
मन वाणी में जाये घुल
सुंदर भोर का अवतरण
चहुं दिशा फैला प्रकाश
नयन कटोरों में बसे कैलाश
अंतःकरण ज्योति जलाये
मरघट में इक विश्वास



© mast.fakir chal akela