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ग़ज़ल : यादों की फिर महक छाई है
यादों की फिर महक छाई है
तुझ से मिल कर हवा आई है

खटका है जैसे तू आएगा
तू है या कोई परछाई है

है अँधेरा गहन पर क़फ़स
रौशनी इक उफ़ुक़ पे छाई है
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