तुम
जां मेरी ग़ज़लों की बरकत हो तुम,
एक नामुमकिन सी हसरत हो तुम,
पहले पहल दिल्लगी तुमसे की थी
और मेरी आख़िरी मुहब्बत हो तुम।
ग़ज़ल बहर रुबाइयों की रौनक हो तुम,
अदा क़ज़ा हया नज़ाकत हो तुम,
शोख़ी-ए-गुलाब की सी रंगत हो तुम,
जाम ज़हर कहर क़यामत हो तुम।
© Rishabh
एक नामुमकिन सी हसरत हो तुम,
पहले पहल दिल्लगी तुमसे की थी
और मेरी आख़िरी मुहब्बत हो तुम।
ग़ज़ल बहर रुबाइयों की रौनक हो तुम,
अदा क़ज़ा हया नज़ाकत हो तुम,
शोख़ी-ए-गुलाब की सी रंगत हो तुम,
जाम ज़हर कहर क़यामत हो तुम।
© Rishabh