निश्छल प्रेम
निश्छल प्रेम है कोमल फूल सा,
बिन स्वार्थ के बस महकता जाता है।
न कोई अपेक्षा, न कोई चाहत,
बस देने में ही आनंद पाता है।
सूरज की किरण सा निर्मल,
जो बिना भेद के सबको छूता है।
नदी की धारा जैसा सरल,...
बिन स्वार्थ के बस महकता जाता है।
न कोई अपेक्षा, न कोई चाहत,
बस देने में ही आनंद पाता है।
सूरज की किरण सा निर्मल,
जो बिना भेद के सबको छूता है।
नदी की धारा जैसा सरल,...