...

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ग़ज़ल
शराबी नहीं मैं, पर न कोई कसर है
ये मदहोशी तेरे हुस्न का असर है

ख्वाबों ख्यालों में न बीत जाए
यह जिंदगी जो बड़ी मुख्तसर है

जन्नत से उतरी फरिश्तों की मानिंद
लगता नहीं तू यहां की बशर है

पाक मोहब्बत का अंजाम यह क्यूँ
बता तू ख़ुदा आज रोज़-ए-हश्र है

मासूम लोगों को मिलते हैं धोखे
शातिर ही मक्कार होते अक्सर हैं

गुलों की महक है गुलशन की फ़ज़ीलत
वर्ना बाज़ार में नकली चीज़ेँ मयस्सर हैँ


© GULSHANPALCHAMBA

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