...

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वो माँ है...
हाँ ठीक हूँ जाओ यहाँ से,क्यों परेशान करती रहती हो;
ये उत्तर नही है माँ के लिए,दुख और हताशा है,
एक रोटी लौट कर क्यों आयी वापस टिफिन में,
इसी सोच में कटी रात और यही जानने की जिज्ञासा है।

खाया भी है या भूखा है, सुस्ताया भी है या लिए शिकन घूम रहा,
रहते हो जब घर से बाहर मां पल पल चिंता करती है;
सांझ ढली जब समय हुआ घर आने का,
वो आ जाने तक एक टक राह ताका करती है।

माँ जीवन में वो ज्योति है खुद जलकर तुम्हे सूर्य बनाती है;
घुटती है रोती है, गुस्से में जलते तुम पर फिर भी लाड़ लुटाती है,
तुम अज्ञानी हो जो समझ न सको मां की ममता;
वो माँ है, हो गलती तुम्हारी फिर भी तुम्हे मनाती है।
© pagal_pathik