शून्यता में विराम
आसक्ति नहीं तृप्ति मांगता है यह मन
संपूर्ण एवं सजल!
कहां खो गए वे दिन, जब शून्यता में विराम पाता था।
आत्मवीभोर काया औढ़ने को ऊष्मा मांग रही है...
क्षणिक नहीं अनंत एवं अजर!
कहां खो गए वे दिन, जब शून्यता में विराम पाती थी।
धीरज नहीं सचेतन चंचलता चाहता है यह...
संपूर्ण एवं सजल!
कहां खो गए वे दिन, जब शून्यता में विराम पाता था।
आत्मवीभोर काया औढ़ने को ऊष्मा मांग रही है...
क्षणिक नहीं अनंत एवं अजर!
कहां खो गए वे दिन, जब शून्यता में विराम पाती थी।
धीरज नहीं सचेतन चंचलता चाहता है यह...