मैं समझ ना पाऊं, क्या ?
शब्दों में बँध सी गई हूं
यूं सिमट सी गई हूं
गहराई इतनी है, कि माप ना पाऊं
अपने ही ख्यालों को,
भाप ना पाऊं।
क्यों शाम इतनी उदास है?
क्यों शब्द नहीं मेरे पास है?
क्यों सब मुरझा गया है ?
शब्दों मे उदासी सी है
आज, ऐसी निराशी सी है
क्या मौसम नम है ,
या मन।
आज धूप उतनी चंचल नहीं
मन में उतनी उथल-पुथल नहीं
एक अजनबी सी शांति है
जो शायद मुझे ना भाती है।
सब अच्छा है, पर फिर भी
कुछ अनकहा सा चुभ रहा है
मैं समझ ना पाऊं, क्या ?
बात जान ना सकूं
बस एक कशमकश है
मन में ,
जो बार-बार
विचलित कर रही है।
अब मैं कैसे ,क्या मान लूं
कैसे ,उस सच को जान लू़ं
मन का वहम मान लूं
या
~अपनी कलम को यहीं विराम दूं।
#hindi#writco#मन
© A_12
यूं सिमट सी गई हूं
गहराई इतनी है, कि माप ना पाऊं
अपने ही ख्यालों को,
भाप ना पाऊं।
क्यों शाम इतनी उदास है?
क्यों शब्द नहीं मेरे पास है?
क्यों सब मुरझा गया है ?
शब्दों मे उदासी सी है
आज, ऐसी निराशी सी है
क्या मौसम नम है ,
या मन।
आज धूप उतनी चंचल नहीं
मन में उतनी उथल-पुथल नहीं
एक अजनबी सी शांति है
जो शायद मुझे ना भाती है।
सब अच्छा है, पर फिर भी
कुछ अनकहा सा चुभ रहा है
मैं समझ ना पाऊं, क्या ?
बात जान ना सकूं
बस एक कशमकश है
मन में ,
जो बार-बार
विचलित कर रही है।
अब मैं कैसे ,क्या मान लूं
कैसे ,उस सच को जान लू़ं
मन का वहम मान लूं
या
~अपनी कलम को यहीं विराम दूं।
#hindi#writco#मन
© A_12