परिंदा
वो शब का राज़ है ,मैं दिन का परिंदा
इस राज को जानु कैसे, मैं बस शाम तक हु ज़िंदा।
पहुँचा दे कोई हाल ए दिल रात बनकर उसे
कह दे उसे बिन तेरे बहुत तड़पता है वो परिंदा।
© मस्तमौला
इस राज को जानु कैसे, मैं बस शाम तक हु ज़िंदा।
पहुँचा दे कोई हाल ए दिल रात बनकर उसे
कह दे उसे बिन तेरे बहुत तड़पता है वो परिंदा।
© मस्तमौला
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