"तुम"
तुम संग लिखती ख़्वाब ख़्याल
झूलती तुम्हारी बाहों मैं ।
क्यों नहीं कह सकती तुमसे
जो छिपा अंतर्मन में।
कभी ऐसा नहीं हुआ पहले
जो अब हुआ संग में।
मेरी...
झूलती तुम्हारी बाहों मैं ।
क्यों नहीं कह सकती तुमसे
जो छिपा अंतर्मन में।
कभी ऐसा नहीं हुआ पहले
जो अब हुआ संग में।
मेरी...