...

4 views

विरह वेदना
देखो बहुत सह लिया इस लम्हे विरह को
कम से कम सान्निध्यता तो बनाये रखो,

सर्वदा एक अबूझ सी आहट होती है
अब ये दूरियां अधिकतम न बनाये रखो,

टूट जाती हैं सरहदें धमनियों की सारी,
धड़कते हृदय में सामंजस्य तो बनाये रखो।।

मुझे पता है कि तुमसे बेवफाई हो नही सकती,
पर मजबूरियों के कंठमाला में सुमेरु तो बनाये रखो।।

तुम्हारी प्राथमिकता है गर उनकी ही खयालातें,
कम से कम मेरी ख्यालों में खुद को तो बसाये रखो।।

मुझे पता है मैं वो श्याम नही द्वापरयुग का,
तुम कलियुग में राधिका की लाज तो बचाये रखो।।

मुझे मंजूर नही बंध जाएं पारंपरिक रिश्तों में,
इस प्रेमतत्व के विस्तार को विस्तृत तो बनाये रखो।।

अबकी बार की विरह वेदना चरम तक आ गया है,
प्रिये ! मेरी सांसो के माला पे गजरा तो लगाए रखो।।