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वक़्त का तकाज़ा
वक़्त का तकाज़ा था ,बदलने लगी हूँ अब ! शब्दों को माप तौल कर कहने लगी हूँ अब !

अपेक्षा नहीं रखती किसी रिश्ते में ,सुकून की नींद मुझको ,आने लगी है अब !
जबसे बहते हुए आंसुओं के निशान पोंछे है ,आईने को भी पसंद आने लगी हूँ अब !

भावनाओं में बहकर अब खुद को परेशां नहीं करती ,सीने में पत्थर सा कुछ रखने लगी हूँ अब !

कोई मेरा है तो उसे परवाह मेरी भी होगी ,आजकल कुछ लोगों को आज़माने लगी हूँ अब !

खुद से कई सवाल करने लगी हूँ अब !

दिल से आज भी सबका ख्याल रखती हूँ पर उनकी बेपरवाही कम असर करती है आजकल !

टूट कर अबतक सबका मान रखा है , "ना "बोलने का फन सीखने लगी हूँ अब !

सब पर छोड़ दिया है उनके फैसले का हक़ ,अपने पक्ष साबित करने कोशिश छोड़ दी है आजकल !

लोगों की उठती उंगलियाँ असर नहीं करती ,मन को दर्पण बनाकर अपने कर्मों का हिसाब रखने लगी हूँ अब !

अपने लिए कुछ वक़्त चुरा ही लेती हूँ , कुछ गानों को गुनगुनाने लगी हूँ अब |

चादर पर काढ़े गए कुछ फूलों के साथ -साथ मुस्कुराने लगीं हूँ अब !

जीती हूँ इस तरह कि आज आखिरी दिन हो,ज़िंदगी एक ही बार मिलती है सबको ,खुद को समझाने लगी हूँ अब !

नहीं ऐसा नहीं कि किसीकी परवाह नहीं मुझे ,पर इसे जताने से कतराने लगीं हूँ अब !

ख़ामोशी से काम किये जाती हूँ ,साथ साथ गुनगुनाये जाती हूँ |

कुछ दिल के करीब है मेरे, कुछ मेरा ख्याल रखतें है ,कम से कम नकली चेहरे पहचानने लगी हूँ अब !

उनके हाथो में मेरी ज़िंदगी की कमान क्यूँकर हो ,जिन्हे परवाह नहीं मेरी,खुद को यही समझाने लगी हूँ अब !

वक़्त का तकाज़ा था ,बदलने लगी हूँ अब ! शब्दों को माप तौल कर कहने लगी हूँ अब

© sapna