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ये ज़िम्मेदार लड़के ( अतुकांत कविता )
6 × 8 के,
छोटे कमरों में ..
अपनी दुनिया बसाते ..
ये लापरवाह कहे जाने वाले लड़के ....

सीख लेते हैं अनजाने ही,
ज़िन्दगी को जीने का हुनर ,
सपनों के आकाश में उड़ने वाले ,
हक़ीक़त की ज़मीन पर पैर जमाना भी बख़ूबी जानते हैं ....

घर से दूर ,
परिवारिक मोह को,
तह लगाकर दिल की अलमारी में,
कहीं सबसे नीचे छुपा कर रख देते हैं ..

त्यौहारों में,
घर पर वीडियो कॉल करके,
हर सदस्य को कैसे ताकते रहते हैं...
फिर कॉल डिस्कनेक्ट कर पोंछ लेते हैं
आँखों की कोर से ढलकते हुए आँसू ....

मन की करने वाले,
मन को मसोसना भी सीख जाते हैं...
और बीमार पड़ने पर
ख़ुद का ख़याल रखना भी....
बस जुटे रहते हैं
मंजिलों को पाने की जद्दोजहद में,
निराशा, उदासीनता भावों को से लड़ते हुए ..
"आज नहीं तो कल" वाक्य से उसे,
आशा और हिम्मत में बदल देते हैं .....

करने लगते हैं,
उसी 6 × 8 के कमरे में,
हर पहर इश्क़ किताबों से,
तो दीवारों पर चिपकी रंग-बिंरंगी
पेपर स्लिप से सजा लेते है अपना कमरा ,
कोने में पड़ी मेज़ ,कुर्सी ,छोटा सा लैंप ...
आवाज़ करता हुआ पंखा ....
सब इनके संघर्ष के साक्ष्य साथी होते हैं ......

रह जाती है तो,
बस एक छोटी-सी खिड़की,
जो इन्हें बाहरी दुनिया से जोड़ती है.....

इस बाहरी दुनिया में,
अपना मुकाम बनाने के लिए
छोटे से कमरे में बना लेते हैं एक छोटी सी दुनिया ..

ये लापरवाह से ज़िम्मेदार बनते हुए लड़के.......।

©️प्रिया ' ओमर '
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