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मैंने हमदर्द भी उसको बनाया, जिसके नाम मेरी तन्हाई है,
मैंने काग़ज़ भी वो खऱीदे जिन्हें रंगना गुनाह हैं,
मैंने रास्ता भी वही चुना जिस्से मंज़िल ख़फ़ा हैं,
मैंने आला भी वही चुना जिसकी रागिनी बदनामी हैं,
मैंने राह भी वही चुनी जिसके हर चौराह् पर गुमनामी है,
मैं ठैरा भी उस गुफ़ा मैं हूँ, जिसके कंड-कंड मैं गुनाही हैं,
मैंने मुल्ज़िम भी माना उसको, जिसके अंग-अंग मे सच्चाई हैं,
मैंने सूखा भी उसे कहा, जिसके हवाओं मैं भी ओंस लेहराई है,
मैंने गुस्ताख भी उसे कहा, जिसकी खिल्लत पे शराफत बनवाई है.
मैंने मुसलसल भी उसको समझा, जिसकी इज़्तिरार से रुस्वाई हैं,
मैंने वफा भी उसे...