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कोरोना के डर से
कोरोना के डर से सबके दिल से
ये आह निकल रही है

शुरू होती थी धड़कन से जो जिन्दगी
आज वो साँसों पर थम रही है

कोई खो रहा है मानवता को अपनी
तो कहीं पर दरियादिली दिख रही है

कुछ लोग भूल चुकें हैं इंसानियत को
तो कहीं पर बेबस सी मदद दिख रही है

किसी को ये बिमारी प्राकृतिक आपदा
तो किसी को मनुष्यों के बुरे कर्मों की सजा लग रही है

कोरोना के डर से सबके दिल से बस आह निकल रही है

पिछ्ले साल जो खुशी थी सबके चेहरों पर इस बार उनके भी चेहरों पर मायूसी दिख रही है

बच्चों की आँखो में डर तो
बड़ों की आँखो में आंसुओ की नमी दिख रही है

इस कोरोना के डर से सबके दिल से सिर्फ़ आह निकल रही है

कभी खेलते थे गुब्बारे में साँसों को भरकर जो
आज उनको भी साँसों को खरीदने की जरुरत पड़ रही है

जहाँ होती थी कभी मुफ्त सेवा
आज वहाँ पर भी कालाबाजारी चल रही है

बेचा जाता है यहाँ पर पानी को शुद्ध करके आर ओ के नाम पर
वहाँ पर आज आक्सीजन के नाम पर शुद्ध हवा भी बिक रही है

कोई गरीब डर रहा कि कहीं भूख से उसके बच्चे न मर जायें
वहीं दूसरी ओर अमीर को भी अपने मंद व्यापार की बढ़ती चिंता दिख रही है

कभी देतें थे जो डॉक्टर लोगों को नयी जिन्दगी
आज उनकों भी अपनी जिन्दगी कम लग रही है

कोरोना के डर से सबके दिल से
बस ये आह निकल रही है

शुरू होती थी जो धड़कन से जिन्दगी
आज वो साँसों पर थम रही है

जाने किस आस में ये जिन्दगी गुजर रही है
नींद आने पर अब तो आँखें भी बन्द होने से डर रही है

दूर जा रहा है हर रोज कोई किसी को छोड़ कर
सोच कर ये बात मेरी रूह डर रही है

कोरोना के डर से सबके दिल से
बस ये आह निकल रही है

कभी शुरू होती थी
जो धड़कन से जिन्दगी

आज वो साँसों पर थम
रही है

कोरोना के डर से सबके दिल
बस ये आह निकल रही है
बस आह निकल रही है ।