कहना है उनसे।
कहना है उन से बोहत कुछ, पर ना जाने क्यों जब भी कहना चाहूं
जुबां नहीं खुलती।
लिखना है उनको बहुत कुछ पर ना जाने क्यों जब भी कलम पकडू
हांथ जम से जाते हैं।
कहना है बोहत कुछ उनसे पर ना जाने क्यों जब भी जुबां खोलू सब्द कहीं गुम होजाते हैं।
कास कभी ऐसा हो पाए जो कहना है उनसे वो बिना कहे ही समझ जाए ।
जुबां नहीं खुलती।
लिखना है उनको बहुत कुछ पर ना जाने क्यों जब भी कलम पकडू
हांथ जम से जाते हैं।
कहना है बोहत कुछ उनसे पर ना जाने क्यों जब भी जुबां खोलू सब्द कहीं गुम होजाते हैं।
कास कभी ऐसा हो पाए जो कहना है उनसे वो बिना कहे ही समझ जाए ।