...

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Yadon k panne
यादों के पन्नों में
मैंने लिखा था वो रिश्ता
जिसका न था कोई नाम
न थी कोई पहचान
खुद से रूठी रही
यूं ही झुकी रही
पर दिल से न दूर उसे जाने दिया..

कभी जब वो होते थे हमसे खफा
उन्हें मनाने में कर देते थे जान की सौदा
पर आज रूठे हुए को मनाना न भाता
यूं ही तोड़ देते अब उनसे ये सारे नाते..

क्या करें, नाज़ुक सा दिल है
चोट लगे तो फिर भी सह जाती है
पर टूट जाए तो जुड़ने में सालों लग जाते हैं
और अगर जुड़ भी जाएं तो
कहाँ यादों से उन्हें मिटा पाते हैं |

© Shilpa Priya Dash