...

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ना जाने कहाँ तू खो गई।
जाने कहाँ तू खो गई,
दिखती तो है तू,
पर अब मिलती नहीं।
हकीकत सपने जैसी जो हो गई।
जाने कहाँ तू खो गई।

मेरे घर की मुंडेर तेरे इंतज़ार में,
अब सिमट के सिकुड़ गयी।
तेरे कदमों की आहट
सुनाई जो पड़ती नहीं।
जाने कहाँ तू खो गई।

घर के दरवाजों की लकड़ी भी,
इस सावन में गल के बिखर गई।
मेरे निरस जीवन की एक लौती खुशी,
ना जाने कहाँ तू खो गई।

तेरे बदन की मदहोश खुशबू
मेरे ज़हन से जाती नहीं,
ना जाने कहाँ तू चली गई,
ना जाने कहाँ तू खो गई।

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© Kunba_The Hellish Vision Show