कौन रोक सकता है
सूरज की पहली किरण को,
चाँद की अदभूत ज्योति को,
कौन रोक सकता है।
आसमान के बफिँले बादल को,
मीटी से निखरती महेक को,
कौन रोक सकता है।
"संकेत "माला को ऊँची गिरी माला को,
कौन रोक सकता है।
डाँ. माला चुडासमा "संकेत "
गीर सोमनाथ
© All Rights Reserved
चाँद की अदभूत ज्योति को,
कौन रोक सकता है।
आसमान के बफिँले बादल को,
मीटी से निखरती महेक को,
कौन रोक सकता है।
"संकेत "माला को ऊँची गिरी माला को,
कौन रोक सकता है।
डाँ. माला चुडासमा "संकेत "
गीर सोमनाथ
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